Friday, September 5, 2008

बेवजह लाइन मरते नहीं फिरते

हम शेखी बघारते हुए नहीं फिरते
हर कहीं पर मुंह मारते नहीं फिरते
हम भी शादीशुदा हैं ऐ मगरूर हसीनो
हर किसीको  लाइन मारते नहीं फिरते

-मुकेश मासूम

Thursday, September 4, 2008

रोने को रो लेंगे

रोने को रो लेंगे , पर रो न पायेंगे

किसी और के भी हम हो न पायेंगे

महफ़िल मुबारक हो,खुशियाँ मुबारक हो

तुमको तुम्हारी ये ,दुनिया मुबारक हो ham

chain se aise jahaan men सो न पायेंगे