पहली नज़र में हमको, अपना सा लगा वो
पहली नज़र में हमको, अपना सा लगा वो।
सच पूछिये तो जाने क्यों, सपना सा लगा वो।
जब तक रहा वो सामन, बस जीते रहे हम,
वो चल पड़ा तो क्या कहें, मरना सा लगा वो।
हँसना तो उसका जैसे, पर्वत की गोद में,
मदमस्त लय से बहता, झरना सा लगा वो।
लफ़्जों की हद में बाँधना, मुमकिन नहीं उसे,
गंगा सा लगा वो, हमें जमना सा लगा वो।
हुस्न का सरताज, और हमदर्द, हमसफ़र,
साहिर, ग़ालिब और हसरत की रचना सा लगा वो।’
मासूम’ उस ख़ुदा को, देखने के बाद,
जिसको भी देखा सरकसम, अदना सा लगा वो .
- mukesh kumar masoom
3 comments:
मासूम जी,
हम आपको कैसे भूल सकते हैं? आप गाज़ियाबाद से हैं, यदि मुझे ठीक याद है तो। हमारी वहाँ के अखबारों में कुछ छापने पर भी बात हुई थी। अभी मैंने आपको फोन भी लगाया, आपका नं॰ बंद था। हम भूलते नहीं सरकार। आपने भी याद किया, बहुत-बहुत शुक्रिया।
लफ़्जों की हद में बाँधना, मुमकिन नहीं उसे,
गंगा सा लगा वो, हमें जमना सा लगा वो।
bahut khoob
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