Monday, July 14, 2008

हसकर दिल पे ज़ख्म खाए बेवजह


हँसकर दिल पे ज़ख़्म खाये बेवजह।
हमने दुश्मन दोस्त बनाये बेवजह।

सोचता हूँ अब कि उनकी याद में,
रात दिन क्यूँ अश्क़ बहाये बेवजह

तोड़कर दिल को गया जो संगदिल,
अब क्यूँ उसकी याद सताये बेवजह।

यूँ मिटाना tha अगर गुलशन तुझे,
फिर क्यूँ तूने गुल खिलाये बेवजह।

कहदो ऐ ’मासूम’ इस संसार से,
अब ना कोई दिल लगाये बेवजह।

-मुकेश कुमार मासूम

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।
यूँ मिटाना या अगर गुलशन तुझे,
फिर क्यूँ तूने गुल खिलाये बेवजह।

geet gazal ( गीत ग़ज़ल ) ) said...

shukriya. kripya ya ke sthan par tha padhe.. jaise- yu mitana tha agar gulshan tujhe . thanks again