धुप छाँव का जो सिलसिला है यारो
यही जिंदगी का फलसफा है यारो
Sunday, July 20, 2008
Monday, July 14, 2008
पहली नज़र में हमको, अपना सा लगा वो
पहली नज़र में हमको, अपना सा लगा वो।
सच पूछिये तो जाने क्यों, सपना सा लगा वो।
जब तक रहा वो सामन, बस जीते रहे हम,
वो चल पड़ा तो क्या कहें, मरना सा लगा वो।
हँसना तो उसका जैसे, पर्वत की गोद में,
मदमस्त लय से बहता, झरना सा लगा वो।
लफ़्जों की हद में बाँधना, मुमकिन नहीं उसे,
गंगा सा लगा वो, हमें जमना सा लगा वो।
हुस्न का सरताज, और हमदर्द, हमसफ़र,
साहिर, ग़ालिब और हसरत की रचना सा लगा वो।’
मासूम’ उस ख़ुदा को, देखने के बाद,
जिसको भी देखा सरकसम, अदना सा लगा वो .
- mukesh kumar masoom
हसकर दिल पे ज़ख्म खाए बेवजह
हँसकर दिल पे ज़ख़्म खाये बेवजह।
हमने दुश्मन दोस्त बनाये बेवजह।
सोचता हूँ अब कि उनकी याद में,
रात दिन क्यूँ अश्क़ बहाये बेवजह
तोड़कर दिल को गया जो संगदिल,
अब क्यूँ उसकी याद सताये बेवजह।
यूँ मिटाना tha अगर गुलशन तुझे,
फिर क्यूँ तूने गुल खिलाये बेवजह।
कहदो ऐ ’मासूम’ इस संसार से,
अब ना कोई दिल लगाये बेवजह।
-मुकेश कुमार मासूम
हमने दुश्मन दोस्त बनाये बेवजह।
सोचता हूँ अब कि उनकी याद में,
रात दिन क्यूँ अश्क़ बहाये बेवजह
तोड़कर दिल को गया जो संगदिल,
अब क्यूँ उसकी याद सताये बेवजह।
यूँ मिटाना tha अगर गुलशन तुझे,
फिर क्यूँ तूने गुल खिलाये बेवजह।
कहदो ऐ ’मासूम’ इस संसार से,
अब ना कोई दिल लगाये बेवजह।
-मुकेश कुमार मासूम
Sunday, July 13, 2008
पर काटकर कहते हैं की उड़ जाइये
पर काटकर कहते हैं की उड़ जाइये
पर काटकर कहते है की उड़ जाइये
दर्द देकरके कहते हैं मुस्कराइए
कोई अदा तो देखे सितमगर की
दरसे ठुकराके कहते हैं रुक जाइये
ना आने की दी थी जिन्होने कसम,
कह रहे हैं वही अब चले आएये
डुबो करके कश्ती को मझधार में,
बेवफा कह रहे हैं सभल जाइये
ज़ख्म देकर न छिडकें नमक दोस्तों,
हुस्नवालों को इतना तो समझाइये
-मुकेश कुमार मासूम
पर काटकर कहते है की उड़ जाइये
दर्द देकरके कहते हैं मुस्कराइए
कोई अदा तो देखे सितमगर की
दरसे ठुकराके कहते हैं रुक जाइये
ना आने की दी थी जिन्होने कसम,
कह रहे हैं वही अब चले आएये
डुबो करके कश्ती को मझधार में,
बेवफा कह रहे हैं सभल जाइये
ज़ख्म देकर न छिडकें नमक दोस्तों,
हुस्नवालों को इतना तो समझाइये
-मुकेश कुमार मासूम
Friday, July 11, 2008
मेरे मन को तुम तो इतना भा गए हो
मेरे मन को तुम तो इतना भा गए हो
प्यार बनकर यार दिल पर छा गए हो
जब कभी यादों के पंछी गुनगुनाएं
चीरती दिल को चलें ठंडी हवाएं
ऐसा लगता जैसे की तुम आ गए हो ।
मैं तुम्हें मेरी जान इतना प्यार दूंगा ।
तेरे सदके अपना जीवन वार दूंगा
सुनके दिल की बात क्यों शर्मा गए हो।
हर घड़ी हर दम तुम्हें ही देखता हूँ
मन के मन्दिर में तुम्हें ही पूजता हूँ
ऐसा जादू तुम कहाँ से पा गए हो ।
-मुकेश कुमार मासूम
सूचना- ये सभी गीत-ग़ज़ल -कहानियाँ दी फ़िल्म रायटर्स असो; द्वारा पंजीकृत हैं । इनका व्यापारिक उपयोग कानूनी तरीके से वर्जित है...
प्यार बनकर यार दिल पर छा गए हो
जब कभी यादों के पंछी गुनगुनाएं
चीरती दिल को चलें ठंडी हवाएं
ऐसा लगता जैसे की तुम आ गए हो ।
मैं तुम्हें मेरी जान इतना प्यार दूंगा ।
तेरे सदके अपना जीवन वार दूंगा
सुनके दिल की बात क्यों शर्मा गए हो।
हर घड़ी हर दम तुम्हें ही देखता हूँ
मन के मन्दिर में तुम्हें ही पूजता हूँ
ऐसा जादू तुम कहाँ से पा गए हो ।
-मुकेश कुमार मासूम
सूचना- ये सभी गीत-ग़ज़ल -कहानियाँ दी फ़िल्म रायटर्स असो; द्वारा पंजीकृत हैं । इनका व्यापारिक उपयोग कानूनी तरीके से वर्जित है...
Tuesday, July 1, 2008
गीत ...जब चाहा दिल को लूट लिया....
जब चाहा दिल को लूट लिया, जब चाहा दिल को जला दिया ।
सब भाड़ में जाए प्यार-वफ़ा,हमें खाक में इसने मिला दिया ।
जब तक न लगाया था दिल को,आजाद और खुशहाल थे हम,
दिन -रात चैन से कटते थे ,न अब की तरह बदहाल थे हम,
तौबा ,इस प्यार ने होते ही , जीना-मरना सब भुला दिया ।
माँ -बाप भुलाये घर छोड़ा,जिस हुस्न्परी की चाहूं में ,
हमें भूलके वो ही झूल रही,अब गैर सनम की बांहों में,
इस रोग ने चैन उड़ा डाला, इस रोग ने पागल बना दिया।
सब भाड़ में जाए प्यार-वफ़ा,हमें खाक में इसने मिला दिया ।
जब तक न लगाया था दिल को,आजाद और खुशहाल थे हम,
दिन -रात चैन से कटते थे ,न अब की तरह बदहाल थे हम,
तौबा ,इस प्यार ने होते ही , जीना-मरना सब भुला दिया ।
माँ -बाप भुलाये घर छोड़ा,जिस हुस्न्परी की चाहूं में ,
हमें भूलके वो ही झूल रही,अब गैर सनम की बांहों में,
इस रोग ने चैन उड़ा डाला, इस रोग ने पागल बना दिया।
- मुकेश कुमार मासूम
सूचना- ये सभी गीत-ग़ज़ल -कहानियाँ दी फ़िल्म रायटर्स असो; द्वारा पंजीकृत हैं । इनका व्यापारिक उपयोग कानूनी तरीके से वर्जित है...
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