Friday, August 1, 2008

दर्द



लो ज़हर अपने हाथों से पिला दीजेये
या जियें किस तरह ये बता दीजेये
कब्र में सब्र से फ़िर मैं सी जाउंगा
पहले थोडा सा तुम मुस्करा दीजेये



हंसकर दिल पर ज़ख्म खाए बेवज़ह
हमने दुश्मन दोस्त बनाए बेवज़ह
यूँ मिटाना था अगर गुलशन तुझे
फ़िर क्यूँ तूने गुल खिलाये बेवज़ह



मय्यत न उठाएं ,रुक जाएँ , कहदो ये ज़माने वालों से
कहदो की अभी कुछ देरी है , मेरी चिता ज़लाने वालों से



यूँ नमक न छिड़को ज़ख्मों पर बेदर्द सनम बेदर्दी से
हमें मौत ही दे दो ऐ मालिक , जीने की इस सरदर्दी से



प्यार का वादा करके मुकरना , सर कसम अपनी आदत नहीं है
ये है धोखा सरासर मेरी जान , ये दोस्तों की शराफत नहीं है



है दिल की तमन्ना मर जाएँ , जीने की कसम क्यों देते हो
हम छोड़ चुके हैं जिस म य को , पीने की कसम क्यों देते हो



वादे भी दोस्तों ने क्या खूब निभाये हैं
ज़ख्म मुफ्त,दर्द तोहफे में भिजवाये हैं
इस से बढ़कर वफादारी की मिसाल क्या होगी
मौत से पहले ही वे कफ़न लेके आए हैं



किसको तलाश कर रहा हूँ आजकल
जीते जी क्यों मर रहा हूँ आजकल
कौन है वों जिसकी खातिर रात दिन
डर बदर मैं फ़िर रहा हूँ आजकल



काटकर कहते हैं की उड़ जाएये
दर्द देकर कहते हैं की मुस्कराईये
कोई अदा तो देखे सितमगर की
डर से ठुकराके कहते हैं रुक जाएये

१०

इस कदर हालत ने कमतर बना दिया
सब लोग ठुकराने लगे पत्थर बना दिया
उड़ने का देके मशविरा धाये हैं ये सितम
काट करके पर मेरे बेपर बना दिया

११

मैंने थोडी सी पी और बहकने लगा , तुम जो बहके तो तुमको सभालेगा कौन
ये ज़वानी नहीं ये है एक म य कदा , मयकदे से तुम्हें फ़िर निकालेगा कौन

१२

उठा बोतल पिला साकी लगाके म य को सीने से
ये दारू लाख बेहतर है किसी का खून पीने से

१३

रूठना , रूठके हसने की अदा ने मारा है
हाँ हमें खामोशियों की सदा ने मारा है
गैरों की बेवफाई तो छोडिये मासूम
हमें तो अपनों की वफ़ा ने मारा है

१४

मेरी जान निकलने वाली है सांसों की दशा बदहाल में है
उसे ख़बर करो कोई जकर्के वह सनम मेरा ससुराल में है

१५

हमसे ज्यादा तुम तद्पोगे , हमको अगर तद्पाओगे
जितना चाहो भूलके देखो लेकिन भूल ना पाओगे
हम तो हैनेक बलि का बकरा , चाहे जितने ज़ुल्म करो
हम न रहे अगर बेदर्दी , फ़िर तुम किसे सताओगे

१६

उन्हें क्या मालूम की गम क्या होता है
टूटा हुआ दिले हमदम क्या होता है
उन्हें तो आता है सिर्फ़ ज़ख्म देना
उन्हें क्या मालूम की मरहम क्या होता है

१७

लो , उधादो कफ़न दोस्तों अब , चल पड़े हम भी जालिम जहाँ से
शौक़ से अब रचालें वों शादी ,कुछ न बोलेंगे अब तो जुबान से

१८

उसका वादा था वादे पे आया नहीं, करके वादा-ऐ-उल्फत निभाया नहीं
हमको शिकवा न होता बताते अगर , प्यार उनको हमारा ये भाया नहीं

१९

पास होकर आपसे हम दूर हैं बहुत
हालत के सितम से मजबूर हैं बहुत
मासूम हमको इतनी न दीजेये सज़ा
हम गुनाहगार कम बेक़सूर हैं बहुत

२०

जानम तुम्हारी याद में जगता रहा मैं रात भर
आसमान के तारों को ताकता रहा मैं रात भर
देखकर सूरत हसीं कभी हस दिया, कभी रो दिया
इस कदर जीता भी और मरता रहा मैं रात भर

२१

जिस बात को गए थे वों बात नहीं हो पाई
मुलाक़ात की तमन्ना थी मुलाकात नहीं होपाई
बरसात का गुमान था की अंगारों पर कूद पड़े
जिस्म सुलगता रहा , बरसात नहींहो पाई

२२

मोहब्बत को सूली चधादी जहाँ ने ,अदालत में अब क्या रखा है ऐ लोगो
उधादों कफ़न अब बना करके अर्थी ,क़यामत में अब क्या रखा है ऐ लोगो

२३

क्या कहें हालत अपनेदोस्तों
ज़ख्मी हैं ज़ज्बात अपने दोस्तों
गर्दिश-औ-नाकामियों के साथ-साथ
दर्द भी है साथ अपने दोस्तों

२४

लो ये तुम्हारा शहर छोड़ करके ,चले जा रहे हैं
चले जा रहे हैं
ठोकर न मारो ये डर छोड़ करके ,चले जा रहे हैं
चले जा रहे हैं

२५

आज फ़िर अश्क अपने बहायेंगे हम
लाख चाहें तो न रोक पाएंगे हम
सदियों पहले तमन्ना थी सेरे चमन
आज ख़ुद वों तमन्ना जलाएंगे हम

२६

मिला क्या ऐ ज़माने , हमारा दिल जलाके
मिटाया हमको आख़िर , हसीं सपने जलाके
अरे ओ बागवान सुन मसल ऐसे न कलियाँ
चमन सींचा है हमने लहू अपना पिलाके

२७

तुमको अहले -वफ़ा समझा था
सारे ज़माने से जुदा समझा था
तू भी बेवफा निकला मासूम
तुझे तो हमने खुदा समझा था

२८

प्यार करना भी खता है यहाँ
वफ़ा करना भी सज़ा है यहाँ
दुनिया में वाही सुखी है मासूम
जिनकी फितरत में दगा है यहाँ

- मुकेश मासूम


































































































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