खट्टी-मिट्ठी यादों में खो आते हैं
चलो, , वतन हो आते हैं
वतन हो आते हैं , वतन हो आते हैं
वों बचपन की यादें , जिनको तुम भूले
वों पीपल की छैया ,बागों के झूले
रो-रो डाली अब भी तुम्हें बुलाती हैं
ओ परदेशी आजा हमको तू छूले
सपनो की उन गलियों में हो आते है
रो-रो बूढे बाबा स्वर्ग सिधार गए
तक-तक बहना के नैना भी हार गए
चाची -टाई तुमको रोज़ बुलाती हैं
तुम तो ऐसे सात समंदर पार गए
कर कर तुमको याद सभी रो जाते हैं
अम्मा के हाथो के लड्डू , वों गुजिया
वों गन्ने का कोल्हू ,वों टूटी पुलिया
सपनो के वों मंज़र तुम्हें बुलाते हैं
- मुकेश मासूम
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1 comment:
bahut badhiya. badhai
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